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सूत्र
अर्थ
१० अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
घरसि रहस्तिएणं भत्तवाणेनं पडिजागरमाणी रविहरइ तन्नं अहं पासिओ हन्यमागए ॥ ३४ ॥ एवं सामियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी सेकेणं गोयमा से तहारुवे णाणीवा तकस्सिवा जेणं ता एसमट्ठे मम ताल रहस्स कहेइ, ते तुम्हव्यमकखाए, जओ तुन्भेजाह ? ॥ ३५ ॥ तणं भगवं गोयमे मियादेविं एवं क्यासी एवं खलु देवापिया ! ममधम्मायरिए समणे भगवं महावीरे जात्र जओणं अहं जाणामि ॥ ३६ ॥ जावंचणं मियादेवीं भगवया गोयमेणं सद्धिं एयमट्ठ संलवइ, तावचणं मियापुत्तरस दारगस्स भत्तवेला जाययाविहोत्था ॥ ३७ ॥ तरणं सामियादेवि भगवं गोयम एवं उस को देखने केलिये में आया हु ||३४|| तब वह मृगावतीदेवी भगवंत गौतम स्वामी से यों कहने लगी अहो इति आश्चर्य ! अहो गौतम ! यह कौन ऐसा तथा रूप ज्ञानी अथवा तपरूप लब्धिकर युक्त हैं जिसने यह मेरा छिपा हुआ अर्थ तुम को कहा, जिसे प्रसिद्ध किया जिस से तुमने जाना और उसे देखने शीघ्र पधारे हो ? ॥ ३५ ॥ तवं भगवंत गौतम मृगादेवी से यों कहने लगे – हे देवानुप्रिय ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवंत महावीर स्वामी सर्व सर्वदर्शी हैं यावत् जिनाने मेरे से कहा जिस से मैंने जाना ॥ ३६ ॥ जितने में मृगावती देवी गौतम स्वामी से उक्त वार्तालाप करती थी उतने में मृगापुत्र कुमार को भोजन देने की वक्त होगई ॥ ३७ ॥ तब वह मृगावतीदेवी भगवंत गौतम स्वामी से यों कहने लगी
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* प्रकाशक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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