________________
48. एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्धन
भगवं गोयमं एजमाणं पासइ २ त्ता हट्टतुटु जाव एवं. वयासी-सदिसंतुणं देवाणुप्पिया ! किमागमण पयोयणं ॥ ३१ ॥ तएणं भगवं गोयमे मियादेवि एवं वयासी • अहणं देवाणुप्पिया ! तवपुत्तं पासियं हवमागए॥ ३२ ॥ तएणं सा मियादेवि मियापुत्तस्स दारयस्स अणुमग्ग जायए, चत्तारिपुत्ते सव्वालंकाराविभूसिए करेइ २त्ता भगवं गोयमस्स पाएसु पाडेइ २त्ता एवं वयासी-एएणं भंते! मम पुत्ते पासह ॥ ३३ ॥ तएणं से भगवं गोयमे मियंदेवि एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पिय! अहं एए तवपुत्ते पासिओमागए, तत्थणं जे से तब जेट्टे पुत्ते मियापुत्ते दारए जाइ अंधे जाइअंधारूवे जन्नं तुमं रहस्सियं भूमि देखकर हर्षपाइ यावत् वंदना कर यों कहने लगी-अहो देवानुप्रिया ! आज्ञादीजीये आप किस प्रयोजन मे यहां पधारे है ? ॥ ३१ ॥ तब भगवंत गौतम मृगादेवी मे ऐसा बोले-हे देवानुप्रिया ! मैं तेरे पुत्र को देखने यहां शीघ्र आया हुं ॥ ३२ ॥ तब वह मृगादेवी मृगापुत्र के बाद चार पुत्र हुवे थे उन को सर्व प्रकार के वस्त्रालंकार से विभूषित कर भगवंत गौतम स्वापी के पांव लगाये, पांच लगाकर यों क लगी-अहो भगवान ! देखीये यह हैं मेरे पुत्र ॥ ३३ ॥ तब वे भगवंत गौतम स्वामी मृगादेवी से ऐसा बोले-हे देवानुप्रिया ! में इन तेरे पुत्रों को देखने के कुमार जन्मान्ध जन्मान्धरूपे है जिस को तूं गुप्त भूमीघर में रखती है, गुप्त आहार पानी देतीदुई विचरतीहै,
28-दु:खावपाक का-पहिला अध्ययन-मृगापुत्रका ११
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org