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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी8%
मियादेवी जाव पडिजागरमाणी २ विहरइ ॥ २८ ॥ तएणं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता नमासत्ता एवं बयासी-इच्छामिणं भंते!अहं तुभहिं अब्भणुण्णाए समाणे मियापुत्तं दारयं पासित्तए ?, अहासुहं देवाणुप्पिया ! ॥ २९ ॥ तएणं से भगवं गोयमें समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्टतुटे समणस्स भगवओ अंतियाओ पडिणिक्खमई २ त्ता अतुरियं जाव सोहेमाणे २ जेणेव मियागामेणयरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मियागाम जयरं मझमझेणं अणुपंवसई
२त्ता जेणेव मियाए देवीए गिह तेणव उवागच्छइ ॥ ३० ॥ तएणं सामियादेवी आदि अवयत्र कुछ नहीं हैं.फक्त आकार मात्र प्रच्छन्न हैं; उस का मृगादेवी पलन करती हुई विचर रही है॥२८॥ तब भगवंत गौतम श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर यों कहने लग-अहो भगवान ! जो आपकी आज्ञा होत में मुगापुत्र कुमार को देखना चहाता हुँ ? भगवानने कहा हे दवानुप्रिय ! जैसेमुख हो वैसे करो ॥२९॥ तब भगवंत गौतम स्वामी श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की आज्ञा प्राप्त होने हृष्ट इतुष्ट अनंदित हुवे,श्रमण भगवंन महावीर स्वामी के पास से निकलकर त्वरिता-शीघ्रता रहित यावत् इयर्यासमिति से देखतेहुवे २ महां मृगाग्राम नगर था तहां आये, मृगाग्राम नगर में प्रवेशकर के मध्य मध्य में होकर जहां मृगावती रानी का घर था, तहां आये ॥ ३० ॥ तब वह मृगादेवी भगवंत गौतम स्वामी को आते हुवे
. प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी ,
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