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एकादशगंग-विपाकमूत्रका प्रथम श्रुतस्कन्ध 2g
तेणंसमएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूइ णामं अणगारे जाब विहरइ ॥ २६ ॥ तएणं से भगवं गोयमे तं जाइ अंधपुरिसं पासइ २त्ता जायसट्टे जाव एवं वयासीअत्थिणं भंते ! केइपुरिसे जाइअंधे, जाइअंधारूवे ? हता अत्थि ॥२७॥ कहिणं भंते ! से पुरिसे जाइअंधे जाइ अंधारूवे ? एवं खलु गोयमा ! इहेव मियगामे णयरे विजयस्स खत्तियस्स पुत्ते मियांदवीए अतए मियापुत्त णाम
दारए जाइअधे जाइअंधारूवे, नत्यिणं तस्स दारगरस जाब आगितिमित्ते, तएणं साराजा भी गया ॥ २५ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवन्न महावीर स्वामी के समीप रहनेवाले बड़े शिष्य इन्द्रभूनी नाम के अनगार यावन् धर्मध्यान ध्याते विचर रहथ ॥२६॥ तब वे भगवंत गौतम स्वामी उस जन्मान्ध पुरुष को देखकर, प्रश्न पूछने की श्रद्धा उत्पन्न हुई यावत् भगवंत के पास आये वंदना नमस्कार कर यों कहने लग-अहा भगवान् ! ऐसा कोइ जन्मान्ध पुरुष है. जन्मान्धरूप उत्पन्न हुवा है ? भगवानने कहा-हां है ॥ २७॥ गोतम स्वामी बोले-अहो भगवान ! वह जाति अन्ध पुरुष जाती अन्धरूप पुरुष कहां है? भगवंत बोले-हे गौतम ! यहां ही मृगाग्राम नगर में विजय क्षत्रि राजा का पुत्र मृगादेवी रानी का आत्मज मृगापुत्र नामका कुमार जन्मान्य जन्मान्धरूप है उस कुमार के हाथ पांव कान नाक आंख
अर्थ
दुःखविपाक का पहिला अध्ययन-मृगापुत्र का 48:02
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