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________________ ७ ११ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी इंदमहेइ जाव निग्गए एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे जाव विहरइ, तएणं एए जाव निगच्छा ॥ २२ ॥ तएणं से अंध परिसे तं परिसं एवं बयासी-गच्छमोणे देवाणप्पिया! अम्हेवि समणे भगवं जाव पज्जवासामा ॥ २३ ॥ तएणं से सचक्ख परिसे जाइ अंध परिसे परओ दंडएणं पगडिजमाणे २ जेणेव समणे भगवं महावीर तेणेव उवागच्छई २ ता, तिवखतो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ त्ता बंदइ नमसइ वंदइत्ता नमसइत्ता जाव पज्जुवासई॥ २४ ॥ तएणं समणं भगवं महावगैरे विजयस्स तीसेय धम्म परिकहइ, जाव परिसा पडिग्गया, विजए विगए ॥ २५ ॥ तेणंकालेणं यों कहने लगा-हे देवानुप्रिय ! आज इन्द्र महोत्सव आदि कुछ नहीं है परंतु श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी पधारे हैं उन के दर्शन करने के लिये यह बहुत से लोगों जाते हैं ॥२२॥ तब वह अन्ध पुरुष सचक्षु पुरुष मे यों कहने लगा. अहो देवानुप्रिय! आन भी श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी के दर्शन करने चले. यावत् सेवा करेंगे ॥ २३ ॥ तब उस जाति अन्ध पुरुष का उस सचक्षु पुरुषने आगे को द धरन कर नहां श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी थे तहां आया, आकर तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिगर वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर सेवा भक्ति करने लगा ॥ २४ ॥ तक श्रमण भगवंत महावीर स्वामी विनय क्षत्री राजा को उस महा परिषदा को धर्मकथा मुनाई, परिषदा पीछी गइ, विजय * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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