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________________ सूत्र अर्थ 48+ एकादशमांग विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 18+ कहिंगछिर्हिति कर्हि उववज्जहिंति ? गोयमा ! अंजूणदेवी उइवासाई परमाउ पालीता कालमासे कालंकिच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उबवणे, एवं संसारो जहा पढमो तहा यव्वं जात्र वणरसईसाणं तओअनंतरं उचट्टित्ता सन्बओ भद्रेणयरे मयूरत्ताए पच्चायाहिंति, सेणं तत्थसाउणिएहिं बहिएसमाणे तत्थेव सवओ भद्रेणयरे सेठिकुलंसि पुत्तताय पच्चाहिंति, सेणं तत्थ उमुक्कबालभावं तहारूवा थेराणं अंतिए केवलिंबोहिं बुज्झिर्हिति २, पव्वज्जा, सोहम्मे सेणं ताओ देवलोगाओ भगवान ! अंजूदेवी काल के अवसर पूर्ण कालकर कहां जायेगी कहां उत्पन्न होवेगी ? हे गौतम! अंजदेवी नये (९०) वर्ष का पूर्ण आयुष्य पालकर काल के अवसर में काल पूर्ण कर, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में नेरीये पने उत्पन्न होगी. यों प्रथम अध्ययन में कह मुजब मृगापुत्री की तरह संसार परिभ्रमण करेगी. यावत् वनस्पति काय में उत्पन्न हो वहां से अंतर रहित निकलकर सर्वोतभद्र नगर में मयूरपने उत्पन्न होगा, वहां चीडीमार के हाथ में मृत्यु पाकर वहीं उस ही सर्वतोभद्र नगर में शेठ के घर में ( पुत्र ने उत्पन्न होगा, वहाँ वाल्या वस्था से मुक्त हो यौवन अवस्था प्राप्त हुवे तथारूप स्थविर के पास केवली प्रणित धर्म से वोधित हो दीक्षा अंगीकार कर आयुष्य पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में देवता होगी । Jain Education International For Personal & Private Use Only 403 दुःख विपाक का दसवा अध्ययन-अंजूरानी का १७९ www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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