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सिवा ६ जाव उग्योसइ ॥ १२ ॥ तए से बहवे वेजावा ६, इमं एयारूयं सोचाजिसम्म जेणेव विजयराया तेणेव उवागच्छइ२त्ता अंजए देवीए बहवे उप्पत्तियाहिं। बद्धिहि परिणामे माणाइच्छति अंजए देवीए जोणीसले उवसामित्ते णो संचाएइ उवसामिचए ॥ १३ ॥ तएणं ते बहवे विजायइ जाहे णो संचाएइ अंजदेवीए जोणीसूले उवसामित्तए तासंता तंता जामेव दिसि पाउब्भया तामेवदिसिं पडिगया ॥ १४ ॥ तएणं सा अंजदेवी ताये वेयणाए अभिभया सम.णी सुक्कामुक्खा हिम्मंसा कट्ठाई कलणाइं पीसराइ पिलवइ ॥ १५ ॥ एवं खलु गोयमा !
अंजदेवी पुरा जाव विहरइ ॥ १६ ॥ अंजणं भंते देवीए कालमासे कालंकिच्चा की ॥ १२ ॥ तब वे बहुत वैद्य वैद्य के पुत्रों वगैरे औषध शास्त्रादि लेकर विजयमित्र राजा के पास आये, आकर अंजदेवी की चिकित्सा उत्पतियादि चारों प्रकार की बुद्धी प्रज्यंकर करी परन्तु अंजदेवी की योनीशल उपशमाने-गमाने समर्थ नहीं हुवे. तब वे वैधादियके अतीहीथक कर जिस दिशा से आये थे
उस दिशा अपने घर पीछेगये ॥१४॥ तब वह अंजूदेवी उस वेदनाकी सन्मखर्डई सूकी भुकी रक्त मांस रहित ककाष्ठ भत हो करुणा जनक शब्द करती हे गौतम ! तुमने देखी वैसी विचर रही है ॥ १५ ॥ यो निश्चय रहे गौतम ! अंजूदेवी पूर्व जन्म के उपार्जन किये हुये कर्मके फल इस प्रकार भोगवती विचर रही है॥१६॥अहो ।
अनुवादक-बालग्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *
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