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एकादनमांग विषाकसूत्र का प्रथम श्रुनस्कन्ध
वेसमणदत्ते तहा अंजू पासइ. गवरं अप्पाणो अट्ठावएवरेइ, जहा सेतली. जाव अंजू भारियाए सद्धिं उपि जाव विहरइ ॥ १० ॥ तएणं तीसे अंजदेवीए अण्णयाकयाइ जोणीसूले पाउब्भूएयाधि होत्था ॥ ११ ॥ तएणं से विजयेराया कोडंबिय पुरिसे सद्दावेइ२त्ता एवं बयासी-गग्छहणं देवाणुपिया ! वदमागपुर जयरे सिंघाडग जाव एवं
वय एवं खलु देवाणुप्पिया! विजए रायस्स अजू देवीए जाणी सूले पाउन्भूए,जाणं इच्छवह विजगमित्र राजा अश्व कहा नीमिन निकला था जैसे वैश्रयण राजाने देवदत्ता को देखीथी तैसेती विजय मित्र राजन अंजून्या को देखी, जिस में विशेष इतना वैश्रवण गजाने पुत्र केलिये याचना कराइ थी
और इसने अपने लिये याचना कराइ, जिस प्रकार ज्ञ.ता सूत्र में ताली प्रधानने कराई थी. यावत् अंजू भार्या के माथ कर प्रसाद सुख भोगना विचरने लगा॥10॥न उस अंजस्वी को अन्पदा किसी वक्त योनीशू का रोग उत्पन्न हुा ॥११॥नव जय राजा के टुम्पक पप को बुलाकर यों कहने लना-हे दनानुपित? जवा तु र वृद्धमानपुर नगर के शृंा.टक य में यावत् महापंथ में महा २ शब्द कर उद्योप। कगे कि हिनापित राजा की अंजानीक यानी रोग उत्पन्न हुआ है,उो कोइ वैद्या दे। आराम करेगा उसे विजय किराना वा अर्थ समर देगा. केदुमा पुगी 3 ही प्रकार उद्योपना
दुख विपाक का दसरा अध्ययन-अंजूरानी का?
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