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________________ अर्थ 43 अनुवादक बालग्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी आउक्खणं ३ कहिं गच्छर्हिति कर्हि उवयनिर्हिति ? गोयमा ! महाविदेहवासे जहा पढमो जात्र सिम्झिहिति जात्र अंतकार्हिति ॥ १७ ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्ते दुनिवागाणं दनमस्म अज्झयणस्न अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ सेवं भंते ! भचेति || दसमं अझ सम्भ मत्तं । विग दस अज्झवणसु पढमो सुयक्खंधो सम्भत्तो ॥ १ ॥ अहो भगवान ! वहां से आयुष्त भवस्थिती क्षयकर कहां जायेंगा ? हे गौतम! महाविदेह क्षेत्र में प्रथम अध्ययन में ऋडे माफक सिद्ध बुद्ध मुक्त होगा यावत् सब दुःख का अन्त करेगा ।। १७ ।। इतेि दशवा अंजू देवी का अध्यय । समःप्त ॥ १० ॥ यों निश्चय हे जंबु ! श्रमण यावत् मुक्ति पधारे उनोने दुःखविपाक { के दशवा अध्ययका यह अर्थकहा || वहिती भगवान !|इत दुःखविपाक सूत्र समाप्तम् ॥ १३ ॥ Jain Education International * इति दुःखविपाक नामक प्रथम * ॥ श्रुतस्कन्ध समाप्तम् ॥ For Personal & Private Use Only # प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायत्री ज्वालामजी * १.८० www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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