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सिरीए देवीए इड्डिए णीहरणं करेइ २त्ता.आसुरत्ते ६देवदत्तं देवि पुरसेहिं गिण्हावेइ २ ना. एएणं विहाणं बझं आणवेई ॥५५॥ एवं खलु गायमा ! देवदत्ता इंधी पुरा जाव विहरइ ॥५६॥ देवदत्ताण भंते ! देवी ईओ काल पाने कालंकिचा कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति?गोयमा! अतीयवासाई परमाउपालेता कालमासे कालंकिजा इमीसे रयणपभाए पुढवीए गरियत्ताए उववण्णे; संसारावगस्सइ, तओणं अणंतरं उबाहित्ता गंगपुरे णयरे हंसत्ताए पञ्चायाहिं, तिसेणं,तत्थमाउणिएहिं बधिए समाणे,तत्थेव गंगपुरे सेट्रिकुले, बोहि, सोहम्मे कप्प,महाविदह सिम्झि हति॥५७॥ गयमं अज्झयणं सम्मत्तं॥९ आश्रूप न करता श्रीदेवी माना का मह ऋद्धिकर निहारन किया, फिर शिघ्र को पातर हो देवदत्त देवी को
अन्य पुरुष के आम पडाकर गौतम ! तुमो देख पाये नैसे हाल करा रहा है ॥ ५५ ॥ यों निश्चय हे है जगातम ! दवदत्ता देवी पूर्वोपार्जिन कर्म भांगवती पिचर रही है, ॥५६॥ अह. भगवन् ! यह दवदत्ता देवी का
काल के अवसर कालकर कहां जायगा कहां उत्पन्न होगा?ह गौतम ! अस्सी.८०) वर्ष का पूर्ण आयु भोगवकर काल के अवसर काल कर इसहो रहसभा नरक में उत्पन होगा यावत् मृगापुत्रकी तरह संभार परिधरण कर गंगापुर नगर में म पक्षीपने उत्पन्न होगा, वहां चिडिमार के हाथ से मारा जायगा. फिर वही गंगापूर नगर में शेठ के कूल में जन्म ले, दक्षाले सौधर्म दवलों में देवतापने उत्पन्न होगा.वाले है महाविदह क्षेत्र में जन्म लेपाक्ष जावेगा ॥ इति विपाक मबहादेवदचारानी का नववा अध्याय सपू॥९॥१
एकादशमांग-विपाकरत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध
वरिपाकका-नामा अध्ययन-दवदत्ता रानी का
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