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________________ स अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + छत्ता देवदत्त देवि तओ अवकम्ममाण पासह २त्ता जेणेव सिर्दिवी तेणव उवागच्छइ २ त्ता सिरिदेवी गिप्पाणं णिचेटुं जीवविप्पजढं पासइ २ त्ता हाहा ! अहो अकजं !! मितिकट्ट, रोयमाणी ३ जेणेव पूसणंदिराया तेणे उबागच्छइ रत्ता पूमणंदीरायं एवं बयासी-एवं खल सामी! सिरीदेवि देवदत्ता देवीए अकाले चव जीवि. याओ विवरोविया ॥ ५३ ॥ तएणं से पूरणंदीराया तामिंदासचेडीओ अंतिए एयमद्वं सोचाणिसम्म महया माइ सोएणं अफण्णे समाणे फरसुणियतविध चपग पायवे धमइ धरणीतलंसि सव्यंगहि सणिपडिये ॥ ५४ ॥ तएणं से पूमणंदीराया महत्तं तरेणं आसत्ये ममाणे बहुहिं राईसर जाव सत्यवाहाहि मित्त जाव परणेणय सद्धिं रोयमाणे २ आकर श्रीदेरी को श्वाशदि जीवित की चटा गहत जीव रात देखी, देखकर हाहाकार किया। अहो इति खदाश्चर्य! जबर अकये हुवा !! यों बोलती रुदन करती जहां पुष्पनन्दा राजा था तहां पाह आकर पुष्पनन्दी गजा को यों कहाने लगी-पो निश्चय हे स्वामी! श्रीदेवी माता को देवदता रानी को विनाकारन जीवित रहित की-मारडाली ! ॥५३॥ तत्र पुषनभी राजा उदासी के पास उक्त कथन श्रान कर अवधार कर माता क मृत्यु के महानोगकर व्याप्त दुवा, असे फरमी मे काट हुइ चम्मक वृक्ष की शाखा पडती है यों धमाकर करणी नलपर सींग कर पडगया ॥५४॥ सर फिर पुष्पनंदी राना मुहुर्तवाद सचिस ही बहुत से राजा मान सहि मित्र जावी यावत् दासदासीयों के साथ रूदन करता wamanawanemammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm प्रकाशक-राजाबहादरलाला हरददव महायमी भालाप्रपादजी. 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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