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एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतसा
अर्थ
सयाण जासमाजायायाधि हात्या ॥ ५० ॥ इमचण देवदार देवी जेणेव सिमी देवी नेणव वामनछह २ ना किसी मजावी बिगहिय समिजासि सहपमत्त एसइ २त्ता दिनालाय का? २ ने मया तव
लाहदई परामसदरत्ता लोहदंडं लावध२ चा तत्तं मम जाइभयं फल किसयमान संडासए गहाय जेणेव सिरीदवी तेणेव उवागच्छद २त्ता सिरी ए देवीए अपागास पक्खबई॥५१॥ तएण सा सिरीदेवी महयारमहणं आरसित्ता कालरामणा जाता ॥ ५२ ॥ एणं
से सिरीदेवीए दासचडीओ आरहियसई सो चाणिसम्म जेणेव सिरीदवी तणेव उवागमदिरापी कर मानकर एकान्त स्थान में शैया में निद्रावश मुनी थी ॥५० ।। इन वक्तवर देवदना देवी जहां श्रीदेवी थी तहां आइ आकर श्रीदेवी को मदिरा के नाश में बहोंश शैय्या में मुख से मृती देखा चारों दिशा में अवलोकन किया कि कोई देखना ता नहीं है, तत्काल जहां भोजनमः था तहां आइ आकर लोहाका दंड ग्रहण किया, लोहदंड ग्रहण कर अग्नि में पाया, तप्त अनि समान क.सहा (पजाम) के फल समान लाल किया, उसे संहास में पकड कर जहां श्रीदेवी सूनी थी तहां आकर श्रीदेवी के अपान से द्वार (योनी) में वह लोहदंड प्रक्षेप किया-दावा दियां ॥५१॥ तब वह श्रीदेवीमा २ शब्दकर चिल्लाइ, और तत्काल मृत्यु प्राप्त हुई ॥५॥तब फर श्रीदेवी की दासीन वह अण्डाट शब्द वनकर हृदयमें धारनकर श्रीदेवधी तहां आइ, देवदत्ता देवी को वहां से भागती हइ देवी, देखकर जहां श्रीदेवी भी नहीं
दुखावपाक का - नवना अध्यय-देना
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