________________
पाणीए ण्हवरावइ उदएहिं मंजावेइ २त्ता तंजहा-उसिणोदएणं, सिओदएणं, गंधोदएणं. विउलं असणं ४ भोयावेयी, सिरीदेवीए व्हायाए जाव पायाच्छित्ताए जाव जिमिय भुत्तुत्तरागयाए, तओपच्छा पहाइ भुंजहि वाउरालाइं मणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥४८॥ तएणं तीसे देवदत्ताए देवीए अण्णयाकयाइ पुव्वरता वरत्त कालसमयसि कुंटुब जागरियं जागरमाणे इमेयारूवे अज्झथिए४एवं स्खलु पूसणंदीराया सिरीदेवीए माइ भत्ते जाव विहरइ,तं एएणं विघाएणं णो संचाएमि अहं पुसणंदिणारण्णो सर्डि. उरालाई भुंजमाणे विहरामी ॥ एवं संपेहेइ २त्ता सिरीदेवीए अंतराणिय ३ पडि
जागरमाणी २ विहरई ॥४९॥ तएणं सा सिरीदेवी अण्णयाकयाइ मजावीविरहिय श्रृंगार कर असनादि चारों प्रकार का आहार तैयार करा के भोजन जिमावे, इस प्रकार श्रीदेवी को स्नान करा यावत् भोजन करा फिर आप अपने स्थानक में आकर स्नान करे भोजन करे प्रधान मनुष्य सम्बन्धी मुख भोगत्रता विचरे ॥ ४८ ॥ तब वह देवदत्तादेवी एकदा प्रस्तावे आधीरात्रि व्यतीतहुवे कुटुम्ब, जागरना जागती हुई इस प्रकारका अध्यवमाय विचार करनेलगी-यों निश्चय पष्पनन्दी राजा श्रीदेवी माता का भक्त होकर यावत् विचरता है, उस व्याघातकर मैं पुष्पनंदी राजा के साथ उदार प्रधान मनुष्य
सनुम्बन्धी काम भोग भोगवने को समर्थ नहीं हुं. ऐसा विचार कर श्रीदेवी को मारने केलिये अन्तर छिद्र 17 अकेली कवमिले इस प्रकार देखती हुई विचस्ने लगी ॥ ४९ ॥ तब वह श्रीदेवी अन्यदा किसी वक्त
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकारक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org