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सूत्र
अर्थ
१०३ अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* दशमम्-अध्ययनम्
जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेण दसमस्त उक्खेवओ ? एवं खलु जंबू ! तेणं कालंणं तेणंसमएणं वद्धमाणपुरेणामे जयरे होत्था, विजय वद्धमाणे उज्जाणे,मणिभद्देजक्खे, विजय मित्तराया ॥ १ ॥ तत्थणं धणदेवणामं सत्थवाहे होत्था, अड्डे, पियंगुभारिया, अंजदारियां जाव सरीरा ॥ २ ॥ समोसरणं, परिसणिग्गया जाव पडिग्गया ॥ ३ ॥ तेकालेणं तेणंसमएणं जेट्टे जात्र अडमाणे जाव विजय मित्तस्स रण्णोगिहस्स असो
यदि हो भगवान ! श्रमण भगवन महावीर स्वामीने दशवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? यों निश्चय हे जंबू ! उस काल उस समय में वृद्धमानपुर नाम का नगर था, वहां विजय बृद्धपान नाम का उध्यान था, उस में मणिभद्र यक्ष का देवालय था, वृद्धमान पुरका विजय मित्र नामे राजा राज्य करता था ॥ १ ॥ उस वृद्धमान नगर में धनदेव नाम का सार्थवाही रहता था, वह ऋद्धिवंत था, जिस की प्रियंगु नाम की भार्या थी और अंजूनामकी उसकी पुत्री थी, वह रूपकर यौवन कर लावण्यता कर यावत् उत्कृष्ट २ शरीर की धारन करने वाली थी ॥ २ ॥ श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वंदने गई, धर्म कथा श्रवण कर परिषदा पीछी गई ॥ काल उस समय में भगवंत के जेष्ट शिष्य
३ ॥
उस
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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