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वादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी :*
बाहरस कण्हसिरिए भारीयाए कुञ्छिसि दारियात्साए उबवण्णे ॥ २८ ॥ तएणं सा कण्हसिरी णवण्हं मांसाणं जाव दारियं पयाया,सकुमाल जा सुरूव॥२९॥ तएणं तीसे दारियाए आमापियरोणिवत्त बारसाहियाए विउलं असणंजाब मित्तणामधज करेइ, होउणं दारिया देवदत्ताणामेणं॥३०॥एणं सा देवदता पंवधाइ पस्मिगहिया जाव परिवाइ ॥३तएणं सा देवदत्ता दारिया उमावालभावे जीवणेणय रूवेणय लावण्णणय जार
अईव २ उकिट्ठा उकिटुसरीरा जायायाविहोत्था ॥ ३२ ॥ तएणं सा देवदत्ता निरीपा उत्पन्न हुवा ।। २८ ।। तहां से अन्सर रहित निकलकर इस ही रोटिनगर के दत्त सार्थवाहि की
कृष्णा श्री भार्या की कुंक्षी में पुत्रीपने उत्पन हुवा ॥ २१॥ तब फिर कृष्णश्रीने ना महीने प्रति पूर्ण हुवे बाद यावत् पुत्रीका जन्मदिया. वह पुत्री सकुमाल यावत सरूपत थी, उस लडकी के मातापिता बारखे दिन विस्तीर्ण अशनादि चारों प्रकार का आहार तैयार कराकर मित्र ज्ञाती आदि को बोलाकर जेमनदेकर इस प्रकार नाम की स्थापना की-हमारी पुत्री का देवदत्ता नाग होणे ॥ ३० ॥ सर फिर यह देवदत्ता पांच धायकर परिवरी हुई यावत् वृद्धिपाने लगी ॥३१॥ तर यह देवदत्ता पुषी बाल्यावस्था से मुक्त हई यौवन कवस्था को प्राप्त हुई रुपकर यौवनकर लावण्यता कर यावत् अनीहि २ उत्कृष्ट २ सरीर की धारन करने वाली हुई ॥ ३२॥ तब फिर वह देवदत्ता कुमारी अन्यदा किसी वक्तनान करके यावत् विभूषित
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
र्थ
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