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एकादशमांग-विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध
समयसि बहुहिं पुरि सेहिं संपरिवुडे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ २त्ता कूडागारसालाए दुवाराई पिहेइ, कूडागार सालाओ समंता अगणिकायं दलयति ॥२६॥ तएणं तासिं एगुणगाणं पंचण्हं देवीसंयाणं, एगुणगाणपंचमाई सयाई, सीहरणो आलोवियाई समणाइं, रोयमाणाइ ३ अत्ताणाई असरणाइ कालधम्मुणा संजुत्ताई ॥२५॥ तएणसे सीहसेणेराया एयकम्मे ४ सुबहु जाव समाजिणित्ता,चउतीसंवास सयाइ परमाउपालइत्ता कालमासे कालंकिच्चा, छट्ठीए पुढीवीए उक्कोसेणं वावीसं सागरोवमाई द्विती उववणे,सणं ताओ अणंतरं उवाहित्ता, इहेव रोहीडए णयरे दत्तस्स सत्यआकर कुडागार शाला के द्वार बन्ध कराये, कडागार शाला के चारों तरफ अनि प्रज्वलित की अर्थात् कडागार शाला को अंर लाय लगादी॥२०॥ तब फिर वे एककम पांचसो रानीयों और एककम पांचसो उन की पायमाताओं सिंहसेन राजाने अंगार लगाये वाद ऋदन करती अक्रन्दन करती, दु:ख का हरन करने वाला, मुख का प्राप्त करने वाला कोई भी नहीं मिलने से मृत्यु को प्राप्त हुई !!॥ २७ ॥ तब फिर सिंहमेन राना इस प्रकार कर्म करके बहुन पाप उपार्जन करके चौतीमसो ! ३४०० ] वर्ष का पूर्ण आयुष्य पालकर काल के अवसर काल प्राप्त हो उठी नरक में उत्कृष्ट बावीस सागरोपम की स्थिति पने
दुःखविपाक का नववा अध्ययन-देवदत्तागनी का
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