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अनुवादक-पलब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
आवसहं दलयइ ॥२२॥ तएणं से सिहसेणेराया कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-गच्छहणं तुभ देवाणुप्पिया ! विउल असणं ४ उवणेह, सुबहुपुप्फवत्थगंध मल्लालंकारंच कूडागारसालं साहरइ ॥२३॥ तएणं ते कोडुबिय तहेव जाव साहरइ ॥ २४ ॥ तएणं तासिं एगुणगाणंपचण्हदेवीसयाणं एगुणपंचण्हंमाइसयाई जाव सव्वालंकार विभूसियाई, तं विउलं असणं ४ सुरंच ६, आसाएमाणी ४, गंधव्वेहिं
णाडएहिय उवगीयमाणाई विहरइ ॥ २५ ॥ तएणं से सीहसेणराया अडरत्तकाल को कूडागार शाल में रहने का कहा, वे उस ही प्रमाणे उप्त कुटाकार शाला में जाकर रही ॥ २२ ॥ तब सिंहसेन राजा कुटुम्धिक पुरुष को बोलाकर, यों कहने लगा-यों निश्चय हे देवानुप्रिया ! तुम जावो विस्तिर्ण अशनादि चारों प्रफार का आहार तैयार कर के उस कूडागार शाला में पहोंचावो बहुत वस्त्र फूल गंध माला अलंकार भी कूडागार माला में पहोंचायो॥२३॥ तब फिर कुटुम्धिक पुरुषने तैसेही , चारो थाहार वस्खादि तहां भेजे ॥ २४ ॥ तब फिर एककमपावसो रानीयों और एक कम पांचसो धाय । मातायों पूर्वोक्त किये हुवे सर्व श्रृंगार सहित वह बहुत अशनादि चारों प्रकार का आहार मदिरादि के साथ खाती खिलाती गन्धर्व-गीतगाती, नृत्वकरती, गीत नृत्य में प्रमोद पाती विचरने लगी॥२५॥ तब फिर से वह सिंहसेन राना आधीरात्रि में बहुत पुरुषों के साथ परिवरा हुवा जहां कूडागार शाला थी तहां आया,
• प्रकाशक-रांजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
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