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सूत्र
अर्थ
एकादशांग विपाक सूत्रका प्रथम श्रुतस्कन्ध
यरस बहिया पच्छिमदिराभाए एवं महं कूडागारसाल जाप करेइ, अगेग खंभ पासाइया, जेगेव सोहसराया तेणेव उपागच्छइ २त्ता तमागचियं पञ्चप्पिणइ ॥ १९ ॥ तणं से सीहसेराया अण्णया कयाइ, एगुणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगुणाई पंचमाई सयाई आमंतेइ ॥ २० ॥ तरणं तासि एगूर्णपंचदेवीसयाणं एगूणं पचमाई सयाई सीह सेणरणा आमंतियाई समाणाई सव्वालंकारविभूसियाई करेइ जहा त्रिभवेणं, जेणेव सुपइयरे जेणेव सीहसेमेराया, तेणेव उवागच्छइ २ ॥ २१ ॥ तणं से सीतेणराया एकूगंपंचदेवीसयाणं, एकूणपंचण्हंमाईसयाणं कूडागारसाल
मना किया, सुप्रतिष्ठ नगर के बाहिर पश्चिम दिशा के विभाग में एक बडी जवर कुटाकार शाला अनेक स्थंभों से वैष्ठित चिन की कारी नवाकर जहां सिंहसेन राजा था तहाँ आकर वह आज्ञा पीछी सुपरत की ।। १२ ।। नत्र हितेन राजा अन्यदा किसी वक्त एक कप पांच रानीयों को और उन की एक कम पांच वाताओं को आमंत्रण दे बोल|२०|| वे एककप पांचलो देवीयों और एकम काम पांचसो उन की धायमान राजा का आमं श्रवनकर सर्व अलंकार कर विभूषित हुई, जिस का विभवकारी वास होकर जहां सुमतिष्ठ नगर जहां सिंहसेन राजाथा तहां आई, ।। २१ ।। तब सिंहसेन राजाने एककम पांचों रानीयों को और एक कम पांचसो उनकी धाय माताओं
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4 दुःखत्रिपाकका नववा अध्ययन -देवदत्तारानी का
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