________________
सूत्र
अर्थ
++++ एकादशमांग- विपाकसूत्र का प्रथम स्कन्ध+8+
दारए वावन्तरिवासाई परमाउपालित्ता कालमा से कालंकिच्चा इसीसे रयणप्पभाए पुढवीए इयत्ता उववज्जिहिति, संसारो तहेव, पुढबीए, तओ हत्थिणाउरेणयरे कुकुडत्ताए पच्चाया हिंति, नायामित्तेचेत्र गोडिल्लवहिंति, तत्थेव हत्थिणाउरेणयरे सेट्टीकुलसि बोही सोहम्मे कप्पे, महा विदेहे सिज्झिहिंति, निक्खेो ॥ ३१ ॥ सप्तमं अज्झायणं सम्मतं ॥ ७ ॥
Jain Education International
0
(( ७२ ) वर्षका पूर्ण आयु भोगव कर कालके अवसर आयुष्य पूर्णकर इस रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होगा ( यावत् मृगापुत्र की तरह संसार बरिभ्रमण करेगा, पृथ्वीकाय से निकल कर हस्तनापुर नगर में मूर्गा होगा! { जन्मनेही गोठील पुरुष उसकी घात करेंगे, तब वहां ही शेठके कुलमें पुत्रपने उत्पन्न होगा, धर्म पावेंगा {संयम लेकर मौधर्मा देवलोक में देवता होगा | वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्मले संमम धारनकर कर्म क्षयकर मोक्ष जावेगा ॥ ३१ ॥ उति दुःख विपाक सूत्रका उम्बरदत्त कुमार को सातवा अध्ययन समाप्तम् ॥ ७ ॥
0
For Personal & Private Use Only
दुःखविपाक सातवा का अध्ययन- उम्बरदत्तकुमार का
१३९
www.jainelibrary.org