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सूत्र
अर्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जव महिलाओ गंगदत्ता सत्यवाहिणी सव्वालंकार विभूतियं करेइ, तं सा गंगदत्ता ताहिं म अहिं बहुहिं णयर महिलाहिं सद्धिं तं विपुलं असणं ४ सुरंच ६ आसामाणी ४ दोहलं विणइ २त्ता जामेवदिसिं पाउन्भूया तामेवदिसिं पडिगया ॥ २३ ॥ तणं सा गंगदत्ताभारिया पसत्थदोहला तंगन्भं सुहपुहेणं परिवहइ ॥ २४ ॥ तएणं सा गंगदत्ता भारिया नवहंमासाणं जाव दारयं पयाया, ट्ठिया जाव णामे जम्हाणं अम्हं इमेदारए उंबरदत्तस्स जक्खरस उबाईलद्धते तं होऊणं दारए उंबरदत्तेणामेणं ॥ २५ ॥ तणं से उबरदत्ते दारए पंचधाई परिग्गहिए परिवड्डई
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( ज्ञाति आदि की बहुत ग्राम की स्त्रीयों के साथ वह विस्तीर्ण अशनादि चारों आहार मदिरा आदि के {साथ अस्त्रादती खाती खिलाती विचर कर वह दोहला पूर्ण कर जिस दिशा से आई थी उल दिशा पीछी । | गइ || २३ || तब वह गंगदत्ता सार्थवहीनी का पूर्ण हुन दोहला उस गर्व की सुख से प्रति पालना करती वृद्धि करती विचरने लगी ||२४|| तब वह गंगदत्ता सार्थवहीनी नवमहीने प्रतिपूर्ण हुने यावत् पुत्रका जन्मदिया जन्मोत्सव किया यावत् नाम स्थापन किया जिस लिये हमारा यह बालक उम्बरदत्त यक्ष की आराधना से { हुवा इस लिये हमारे इस पुत्रका नाम उम्बरदत्त कुमर होवे ||२२|| तब फिर वह उम्रदत्त पांच धाय मात
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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