________________
अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ २६ ॥ तत्तणं से सागरदत्ते सत्यवाहे जहा विजयमित्ते जाव कालंमासे कालंकिच्चा, गंगादत्तावि, उंबरदत्त निछूडे, उहाउज्रियते ॥ २७ ॥ तएणं तस्स उंबरदत्तस्स दारगस्स अण्णयाकयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलसरोगायंका पाउब्भया तंजहा-सासे खासे जाबकोढे ॥ २८ ॥ तएणं से उबरदत्ते दारए सोलस रोगायंकाहिं अभभूए समाणे सडियहत्थं जाव विहरइ ॥ २९ ॥ एवं खलु गोयमा ! उंबरदत्ते दारए पोरापुराणाणं जाव विहरइ ॥ ३० ॥ तएणं उंबरदत्त दारए
कालमासे कालंकिच्चा कहिं गच्छहिंति कहिं उक्वजिहिंति ? गोयमा ! उंबरदत्ते से वृद्धि पाया ॥२६॥ तब फिर वे सागरदत्त सार्थवाह विजय धिमार्थवाही की तरह इस बद्र में मृत्यु पाया उसके फिकरमे गंगदत्ता भी मरगई, कोत बालने कर्ज बाट को घरस्पति देकर उम्बरदत्त कुमार को घर से निकाल दिया, ॥२७॥ तव उम उम्परदत्त के किमी वक्त शरीर में श्वास खां यावत् कोड, इन मोलेरोग की उत्पती हुइ ॥ २८ ॥ तब उस उम्बरदत्त का शरीर सोले रोग से विगहा यावत् सहगये हार पांच आदि शरीर यावत् हे गौतम! तुमने देखा चैमा विचरता है ॥२१॥ यो निश्चय हे गौतम! उम्पत्तने पहिले
कोपार्जन किये हैं यावत् जिसके फल भोगवता विचर रहा है ॥३०॥ अहो भगवन् ! उम्परदत्त यहां + मे आयुष्य पूर्ण कर कहां जावेगा कहाँ उत्पन्न होगा? यों निश्चय हे गौतम ! उम्बरदत्त वालक
- प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
अर्थ
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org