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________________ १३४ 4 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी पयाए जामि,गंगदत्तं भारियं एयाटुं अणुजाइ॥१८॥तरण सा गंगदत्ताभारियाए एयमटुं अभाण्णाया समाणी सुबहु जाव मित्तगाइंसद्धिं ताआगिहाओ पडिणिक्खमइत्ता २त्ता पाडलीसंड जयरं मझमझगं भिगच्छइ २त्ता जेणव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ२त्ता पुखरिणीएतीर सुबहु पुप्फांध मलालंकारंटुवेइ २ ता पुक्खरिणीउगाहे. इ २ त्ता जलमज्झणंकरेइ २ त्ता जलकिडंकरेइ २ त्ता हाया कयकोउपमंगला उलुपडि साडिया पुक्खरिणी पच्चुत्तरइ २ ता तं पुप्फ गिण्हइ २ ता जेणव उंबरदत्तस जवखस्त जव स्वायतणे तेणेव उवागच्छइ २ ता उबरदत्तस्स जक्खस्स की हे देवानुपिया मेरे मन में भी यही विचारथा फिकिम कारनसेतुमारेको पुत्र पुत्री नहीं होते है,यों कह गङ्गदत्ताभा का उक्त कथन अच्छा जाना. आज्ञादी) ॥ १८॥ तब वह गंगदत्ता भार्या उक्त अर्थ की अज्ञा प्राप्त होते बहुत मित्रज्ञाती आदि की खी यों की साथ अपने घर से निकलकर पाडलीखंड नगर के मध्य मध्य में हो निकलकर जहां पुष्करनी(बावडी) थी तहां आई, पुष्करनीके किनारे पर साथे लाये हुवे बहुत पुष्फ गंधमालाई अलंकारका स्थापन किया, पुष्करनी में उतरकरजलमंजन जलक्रिडाकी, स्नान किया कुल्ले आदि कौतुकमंगल, कतिलकादिकर आली [पानीकी भींजी हुइ साडी पहने हुव ही पुष्करनीसे बहिर निकली, बाहिर निकलकर वे पुष्पादि ग्रहणकिये. जहां उम्बरदत्त यक्षका यक्षायतनवा तहांआइ, उम्बरदत्त यक्षकी प्रतिमा को देखते ही • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी , Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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