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-गिण्हउण उच्छंगं णिवेसियाई दिति समुलावए सुमहुरे पुणो पुणो मंजुलप्पभाणिए, अहण्णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्ण, एतो एकतर मविणपत्ता ॥ १६ ॥ तं सेयंखलु ममं कलं जाव जलंते सागरदत्तं सत्थवाहं आपुच्छित्ता सुबहु पुप्फवस्थगंधमल्लालंकारं महाय, बहुहिं मित णाइ णियग सयण संबंधि परिजण महिलाइंसडिं पाडलिसंडाओ जघराओ पडिणिक्खमित्ता बहिया जेणेव उबरदत्तस्स जखस्स
जक्खायतणे तेणेव उवागच्छइत्तारत्ता तत्थणं उंम्बरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुप्फ हाथ में ग्रहण कर मलती है गोद में बैठीता है, कोमल-मधुर वचम कर वारम्बार स्नेह वचन कर बोलाती है उसे धन्य है, और इस ही सिये में अधन्य हुँ अपुण्य हुँ चुंकि आज तक एक ही पुत्र व पुत्री को प्राप्त नहीं कर सकी ॥१६॥ इस लिये अब श्रेय है मुझ को कॉल प्रातःकाल होते जाज्वलमान, सूर्य प्रगट होते सागरदत्त मार्थवाह को पूछकर अच्छे बहुत फूल वस्त्र सुगंधी
याला ग्रहण कर, बहन मित्रज्ञाति स्वजन सम्बन्धियों परिजनकी स्त्रीयों के साथ परिवरी हुई पाडली खंड नगरसे। लनिकल कर बाहिर जहां उम्बरदत्त यक्षका यक्षायतन ( मंदिर ) है वहां जाकर तहां उम्बरदत्त यक्षकी 1 महा मूल्य फुलोसे आर्चगकरूं, करके दोनों घुटने जमीन को लगाकर पांच पडूं और याचना करूं कि
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*काशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादणी*
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