________________
२२ अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भगवं गोयमे दोच्चपि छ?खमण पारणगांस पढ़माए पोरसीए सज्झाई जा पालिस णयरं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविरसइ तंचव पुरिसं पासइ२त्ता कच्छूलं तहेव जात्र संजमेणं विहरइ ॥ ८॥ तएणं से गोयमे ! तचं छटुं तहेव जाव पचत्थिामल्लेणं दुगरेणं अणुप्पविसमाणे तंत्र पुरिसं कच्छूल्लं पासइ २ त्ता चउत्थं छटुं उतरेणं इमे अज्झथिए समुपण्णे- अहोणं इमे पुरिसे पुरापोराणाणं जाव एवं क्यासी-एवं खलु अहं भंते! छटुस्स जाब रियंते जेणेव पाडलिसंडे गयरे तेणेव उवागच्छइ २त्ता पाड. लिपुरे पुरस्थिमिल्लेणं दुवारेणं अणुपविटे, तत्थणं एगं पुरिसं पासइ कच्छूले जाव आज्ञा ग्रहण कर यावत् पाडलीखंड नगर के दक्षिण के द्वार से प्रवेश किया, तहां भी वह पुरुष देखा बुजली सहिन यावत् आहार आदि ग्रहण कर पीछे आये मयम तपकर आत्मा भावते विचरने लगे नव गौतम ! तीसरे छठ खमन-बल के पारने में पाडलीखंड नगर में पश्चिम के द्वारकर से प्रश कि
वहां, उस ही पुरूप को देखा और चउ थे वले के पारने उत्तर के द्वारसे प्रवेश करते उपही पुस्त्र को दखा. बता गौतम मापी के इस प्रकार का अध्यालाय उत्पन्न हुवा-अहो यह पुरुष पुर्व के पूराने मांचित कर्षके फल
का नरक के समान दुःख का प्रत्याक्षानुभव करतापिचरता है यावत् भगवंत के पास आकर यों कहनेलग-यों निश्चय अहो भगवान में ले के पारने का इर्याममिती युक्त पाडलीखंड नगर के फूंके द्वार से प्रवेश
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org