SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कप्पेमाणे तं जहा अहं दोच्चं छटपारणए दाहिणिल्लेदारण तहेव तच्च छटुं पञ्चत्थिमेणं तहेव. ते अहं चउत्थं छपारणए पाडलिउत्तर दारेअणुप्पविठू तंव पुरिसं पासामि कच्छूले जाच वित्तिकमाणे विहरइ, चिंता, पुवभवे पुच्छा वागरेइ ॥ ९ ॥ एवं खलु गोयमा ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं इहब जंबुद्दीवेदीवे भारहेवासे विजयपुरे णामं गयरे होत्था, कणगरहे णामराया होत्था॥१०॥तस्मणं कणगरहस्मरणो धणं १२७ 486+एकादशमांग त्रिपाकमंत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 4+8+ किया, तहां एक पुरुष को देखा खुजली युक्त यादन् द्वार २ फिर उपजीविका करता विचरता हुवा जब में दूसरे छठ स्वमन के पारने को दक्षिण के द्वार से प्रवेश किया तो भी उस ही पुरुष को देखा, तीसरे बेले के पारने केदिन पश्चिम के द्वार से प्रवेश करले उसी पुस्पको देखा और चौथे बले के पारने उत्तर के द्वार से प्रवेश करते उस ही पुरुष को देखा, खुजलयुक्त यावत् भिक्षा वृत्तिकरता विचरता हुवा. तक मुझे विचार हुवा कि यह किस पुराकृत कर्मोदया से नरक ममान दुख का प्रत्यक्षानुभव करता विचरता है अहो भगवन् ! यह पूर्वजन्म में कौन था ? ॥ ९॥ भगवंत ने कहा-यों निश्चय हे गौतम ! उसमें काल उस समय में इस ही जंबुद्वीप के भरत क्षेत्र में विजयपुर नाम का नगर था, वहां कनकरथ राजा राज्य करता था, ॥ १० ॥ उस कनकरथ राजा का धनंतरी नाम का वैध था, वह आठ प्रकार आयुयो दाखविपाक का-सातवा अध्ययन-जम्बरदत्त कुमार का www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy