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________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी + ॥ ५ ॥ तणंकालेणं तेणंसमएणं भगवं गोयम तहतए जणव पाडलिसड गयर तणव उवागच्छइ २ त्ता पालिसंड जयरे पुरथिमण दुवारणं अणुप्पविसत्ति, तत्थणं पासइ एगं पुरिसं कच्छलं कोढियं दोउयारेयं भगदलियं अरिसिल्लं कासिल्ल सासिल्लं यमूह सूयहत्थं सूयपायं सडिय हत्थंगुलियं, सडिय पायंगुलियं, सडिय कण्णाणासियं, रसिया एय पूएणय थिविथिवित्तं वणमुहं किमि उण्णुयंतगलंत पृयरुहिर लालापगलंत कण्णणासं अभिक्खणं २ पूयकवलेय रुहिरकवलय किमियकवलेय वममाई कट्ठाई कलुणाई वीसराई कृत्रमाणं मंछिया चडगरपहगरेणं अणिजमाणमग्गं फुटहडाहडसीसं भीक्षार्थ आये, पाडलीखंड नगर के पूर्व के द्वार से प्रवेश किया, तहां एक पुरुष को देखा वह पुरुष खुजली के रोग युक्त, कारके रोगयुक्त, जालोदर के रोगयुक्त, भगंदर के रोग युक्त, रम रोग युक्त, जिस के खांनी चलती थी, श्वास उठता था, पांच हाय की अंगुलीयों पर सोज। चडा हुवा था, हाथ पांव की अंगुलियों सडगाइ था, कान नाक भी सडगये थे, पीप ( रस्सी) रक्त शरीर से जर रहा था, क्रीमी (कीडे ) कली जबल कर रहे थे, गूगडे हुवे थे, मुह मे से कमी सहिन पीप की लाल उगल रहा था, वारम्बार रक्त के कुल्ल पीके कुल का मन करता था, क्लाशत करूणा जनक वचन बोलता था, अव्यक्त शब्द से अक्रदं करता था, मक्षीकाओं के समूह उसपर बेटे हुवे थे, बहुतसी मक्षीकाओं उस के पीछे परिभ्रमण कर रहीथे। • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुरदेव महायजी जालाप्रसाद जी . - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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