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१११कादशर्माग-विषाक मूत्र का यम श्रुत्स्कन्ध428+
॥सप्तम-अध्ययनम् ॥ जइण भंते ! उक्खंवो सत्तमस्सा-एवं खलु जंबू ! तणंकालेणं तेणंसमएणं पाडलिं संडे णयरे, वणसंडे उज्जाणे, उंबरवत्तेयक्खे ॥ १ ॥ तत्थर्ण पाडलिसंडे गयरे सिहत्थ राया ॥ २ ॥ तत्थणं पाडलिसंडे गयरे सागरदत्त सस्थवाहे होत्था अड्डे, गंगदत्ता भारिया ॥ ३ ॥ तस्सण सागदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ता भारियाए अत्तए उंबरदत्ते णाम दारए होत्था, अहीण ॥ ४ ॥तेणंकालंगं तेणंसमएणं समोसरणं जाव परिसा पडिगया यौद अहो भगवान ! साता अध्ययन का क्या अर्थ कहा है. ! यो निश्चय हे जंब ! उस काल उस समय में पाडली खंड नाम का नगर था, वनखंड नाम का उध्यान था, उम्वरदत्त यक्ष का यक्षायतन था, है॥ १ ॥ उस पाडलीखंड नगर में सिद्धार्थ राजा राज करता था ॥२॥ उस पाडलीखंड नगर में सागरदत्त नाम का सार्थवाही ऋद्धिवंत था, उस की गङ्गादत्ता नामकी भार्या धी ॥३॥ उस सोगरदत्त का
पुत्र गङ्गदत्ता भार्या का आत्मजत उम्बदत्तं नाम का कुमार था, वह सर्व अंग पूर्ण था ॥ ४ ॥ उस काल १०. उस समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी समोसरे, परिषदा वंदने आई, धर्म कथासुनाइ, परिषदा पीछी
गइ, ॥ ५ ॥ उस काल उम समय में भगवंत गौतम सामी पूर्वोक्त प्रमाण जहां पाडलीखंड नगर था तहां
दुःख विपाक का-सातवा अध्ययन-उम्बरदन कुमारका
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