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अर्थ
अनुवादक ब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
यथा ॥ २५ ॥ तएणं से मंदिसेण कुमारे रज्जोय जाव अंते उरे पुय मुच्छिए इच्छइसिरिदामंरायं जीविया विवशेवित्ता, सयमेव रज्जसिरि कारमाणे पालेमाणे विहरइ ॥ २४ ॥ एणं से णंदिसेण कुमारे सिरिदामस्स रण्णो अंतरं अलभमाणे अण्णा या चित्तं अलंकारियं सदावेइ २त्ता एवं वयासी-तुमणं देवाणुपिया ! सिरिदाम रायं सव्ॠट्ठाणेसु सव्वभूमियासुय अंत उरेय दिष्णधियारे सिरिदामरायं अभिक्खणं २ अलंकारिय कम्मं करमाणे विहरइ, तण्हं तुमं देवाणुपिया ! सिरिदाम राय अलंकारियं करेमाणे गीवाए खरंणिवेसेहिं, ताणं अहं तुम्मं अद्धरजियं करेस्समि,
राजा को जीवित रहित कर मारकर आपस्त्रयं राज्यलक्ष्मी का भोगोपभोग भोगवने की इच्छा करने लगा || २५ || तब फिर नंदीसेन कुमार श्रीदाम राजा को मारने का अवसर मौका प्राप्त नहीं करता हुवा, अन्षदा उस चित्र नामक अलंकारी [ नापिक । को बोलाया, बोलाकर एकान्त में लेकर उस से यों कहने लगा - हे देवानुप्रिय ! तुम श्रीदाम राजा के शैय्या स्थान में भोजन स्थान में प्रसाद में अंतेपुर में प्रवेश करते हो, श्रीदाम राजा का वारम्वार अलंकार (मुंडनादि ) करते हो इस लिये हे देवानुमिय ! तुम श्रीदाम राजा का अलंकार-क्षोर कर्म (हिजामत ) करते गले में क्षुरा- पासन- उस्तरा लगाकर मारडालो, सब फिर मैं तुमारे को मेरा आधा राज्य देखूंगा, तुमारा कहा करूंगा, और तुम हम दोनों प्रधान राज्य
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* प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी *
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