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________________ ११९ एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध987 ' परमाउपालइता कालमासे कालंकिच्चा छट्ठीए पुढबीए उक्कोसं वावीसं सागरोवमाइं ढिईएम णेरइएसु उववण्णे॥२०॥सेणं तओ अणंतरं ऊव्वहित्ता इहेव महुराए णयरीए सिरिदामस्स रण्णो बंधुसिरीए देवीए कुञ्छिसि पुत्तताए उववणे ॥ २१ ॥ तएणं बंधुसिरी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया ॥ २२ ॥ तएणं तस्स दारगरस अम्मापियरो णिवत्त बारसाहे इमं एयारूवं णामधेजं करेइ, होउणं अम्हं दारगे गंदि सेणे णामेणं ॥ २३ ॥ तएणं से गंदिसेण कुमारे पंचधाई परिबुडे जाव परिवढाइ ॥२४॥ तएणं से गंदिसेण कुमारे उमुक्कबाल भावे जाव विहरई, जाव जुबरायाजाए पूर्ण आयुष्य पालकर, काल के अवसर काल करके, छठी नरक पृथ्वी में उत्कृष्ट बाबीस सागरोपम की स्थिति में नेरीयेपने उत्पन्न हुचा ॥२०॥ तहां से अन्तर रहित निकलकर इस मथुरा नगरी में श्रीदाम राजा, की बन्धुश्रीदेवी रानी की कुंक्षी में पुत्र पने उत्पन्न हुवा ॥ २१ ॥ तब फिर बन्धुश्री मव महिने पूर्ण पुत्र का जन्म दिया ॥ २२ ॥ तब फिर उमबालक के माता पिताने चारवे दिन इसप्रकार नाम स्थापा-हमारे बालक होने से हम को आनन्द हुवा जिस से इस का नाम नंदीसेन कुमार होवो ॥ २३ ॥ तब फिर नंदी सेन कुमार पांच धाय से वृद्धि पाता बाल्यामस्था से मुक्त हो यौवन अवस्था प्राप्त होते युवराजपद पर स्थापन हुना ॥ २४ ॥ तब फिर नंदीसेन कुमार राज्य सुख में यावत् अन्तेपुर में मूञ्छित दुवा श्रीदाम + दुःखविपाक का छठा अध्ययन-नंदीसेन कुमार का 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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