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+8+ एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध 428
वरताणय, वागरज्जणय, बालसत्तरज्जणय. पंजाणिगरासंचिद्ध १४॥ तस्सणं दुजोहण चरगपालस्स बहवे अखिसागर करपत्ताशय, सस्पताणय, कलंबचीर पसाणय पुंजाणिगरा संचिट्ठइ ॥१५॥ तस्मण दुजायण चरमपालस्स बहरे लोहखी- . , लणाय कडसकराणय, अलिपत्ताणय पुंजाणिगरा संचिट्ठ॥ १६ ॥ तस्सणं दुजायण चरगपालस्स बहवे सुच्चीणय मंडणाणय कोटिलाणय पुंजाणिगरा संचिट्ठइ ॥ १७ ॥ तस्सणं दुजोहण चारगपालस्ट बहवे सत्थाणय पिप्पलाणय कुहाडाणय, पहच्छेयणा
णय, दब्भाणय, पुंआणिगरा संचिठ्इ ॥ १८ ॥ तस्सणं से दुजोहण चारगपालस्स पमडी कटे ऐसी) बडी २ लम्बी तथा छोटी रस्सीयों बन्धन करने ढग करके रक्खी थी ॥ १४॥ उम योधन, जेलर के बहुत करवत खङ्ग छूरी पाछने इत्यादि चीर फाड करने के शस्त्र के ढगकर रक्खे थे ॥ १५ ॥ उस दुर्योधन जेलर के बहुत से लोहके खीले, वांस की शलाइयों. विदंक के आकार वाले इत्यादि का लगकर रक्खाथा ॥१६॥ उस दुर्योधन जेलर के बहुत से मूई सोये फाल (डाम देने-दागने) के शस्त्र, इत्यादि का ढगकर रखा था, ॥ १७ ॥ दुर्योधन जेलर के बहुत से गुप्ति उस्तरे कतरमी 30 कैची कुहाडे नख छेदने की नेरनी फाडने के शस्त्र निनके समूह रक्खे थे, ॥ १८ ॥ तब फिर वह दुर्योधन.
48 दुःखविपाक का छठा अध्ययन नन्दोमेनकुमार का ,
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