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का प्रथम श्रुनन्ध 48 एकादशमांग-विपाकसूत्र
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सीहरहस्स रगणो दुजोहणे णाम चारगपालए होत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे ॥ ८ ॥ तस्तणं दुजोहणस्स चारगपालस्स इमेयरूवे चारगभंडे होत्था-तस्सणं दुजोहणस्स चारगपालस्स बहवे अयकुंडीणो-अप्पेगइयाओ तंबभरियाओ, अप्पेगइयाओ, तउभरियाओं, अप्पेगइया सीसगभरियाओ, अप्पेगइया कलकल भरियाओ,अप्पेगइया खारतेल भरियाओ; अगिणीकायंसि अद्दहियाओ चिट्ठति ॥ ९॥ तस्सणं दुजोहणस्स
चारगपालइसे बहवे उहियाओ आसमुत्त भरियाओ, अप्पेगइयाहत्थीमुत्त भरियाओ, समृद्धि कर युक्त या तहां सिंहपुर नगर में सिंहस्थ नाम का राजा राज्य करता था ॥७॥ उस सिंहस्थ राजा के दुर्योधन नाम का चोर का रक्षपाल (जेलर ) था, वह अधर्मा पापट यावत् कुकर्म कर आनन्द प्राप्त करताया ॥८॥ उस दुर्योधन जेलर के चोरोंको सजा देने के इस प्रकार के उपकरणो का संग्रह किया या उस दुर्योधन जेलर के बहुतसी लोह के कूडे थे उस में से किसी में तांबे का उकाला हुवा रस भरा था, किसी में तरू
का तप्तरस भराथा,किसीमें साँसेका उष्णरस भराथा,किसी तीक्षण चूर्ण मिश्रित गरमा गरम पानी भराथा, कितने में अति तीक्षण तेजापादि क्षार भरा था, कितनेक में में उष्ण तेल भगथा, यह सब अग्निपर उकलते२ रकरखे हुवे थे ॥ ९ ॥ उस दुर्योधन जेलर के बहुत से मट्टी के कुंडे थे. उन में से कितनेक में अश्व-घोडे का मूत. भर रक्खा था, कितनेक में हाथी का मूत भरा था, कितनेक में ऊंटका मूत भरा था, किसनेक में
4 दुःखविपाक का छठा अध्ययन-नन्दासन
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