SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 18 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी में वि दारिया उमुक्कबालभावा विण्णाय जोव्यणगमणुपता रूवेणय जोवणेणय लवण्णेणय उक्किट्ठा उकिट्ट सरीरया भविस्सइ ॥ ३५ ॥ तएणं से सगडेदारए सुदरिसणाए रूवेणय लावण्णेणय जोवणेणय समुच्छिए ४ सुदरिसणाए भगिणीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंज़माणे विहरिस्सइ ॥ ३६ ॥ तएणं से सगडेदारए अण्णया कयाइ सयमेव कुडग्माहत्तं उत्रसंपजित्ताणं विहरिस्सइ ॥३७॥ तएणं से सगडदारए कूडग्गाहे भविस्तइ अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे .. ॥ ३८ ॥ एयकम्मेसु बहुपाबं जाव समजिणित्ता कालमासं कालंकिच्चा इमीसे रयण॥ ३४ ॥ तच फिर वह सुदर्शना कुमारी भी बाल्यावस्था से मुक्त हो यौवनावस्था को प्राप्त होगी, शरीर की क्रान्ति आकार उस का संयुक्त यौबन वय विशेष कर लावण्यता-स्त्री की चेष्टा कर प्रधान स्त्र लक्षण कर प्रधान इस प्रकार होगी ॥ ३५ ॥ तब फिर वह शकट बालक उस मुदर्शना के रूप में यौवन में लावण्यता में मूञ्छित हुवा अपनी बहिन के साथ उदार प्रधान मनुष्य सम्बन्धी काम भोग भोगवता विचरेगा ॥ ३६॥ तब शकट बालक एकदा प्रस्तावे कूडग्राही-चुगलखोरका होदा प्राप्त करेगा ॥३७॥ तब र वह शकट बालक कूडग्राही अधर्मी यावत् कूकर्म कर आणन्द प्राप्त करेगा ॥ ३८ ॥ यों महा पापका * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्व प्रलदजासी. - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy