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________________ +8+ एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध +8+ सगडेणं दारए सत्तावण्णं वासाई परमाउपालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे एंगे * महं अउमयं तत्तं समजोइ भूयं इत्थी पडिमं अवतासाविए समाणे कालमासे कालं. किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढबीए मेरइयत्ताए उववजिहिं ॥३१॥ सण तओ अणंतरं उध्वहित्ता रायगिहे णयरे मातंगकुलंसि जमलत्ताए पञ्चायाहि ॥ ३२ ॥ तएणं तस्स दारगरस अम्मापियरो णिवत्तबारसमस दिवसस्स इमें एयारूवं णामधेनं करिस्संति, होउणं दारए सणणामेणं होउणं दारिए सुदस्सिणा णामणं ॥ ३३ ॥तएणं सेसगडे दारए उमुक्कयाल भावे जोवणगमणुपत्तं भरिसइ ॥ ३४ ॥ तएणं सा सुदरिसणा काल के अवसर काल करके कहां मारेगा. कहां उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! शकट कुमार संचावन वर्ष का उत्कृष्ट आयुष्य भोगव कर आज दिन के तीसरे भागमें एकबडी लोह-पोलाद की स्त्री की प्रतिमा (पुसली) अनिमे ऊष्णकी हुई अग्नि वर्ण समान उसका का शकटकुमार को ढालिंगन कराने से कालके अवसर काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मेरीपने उत्पन्न होगा ॥ ३१ ॥ तहां से अंतर रहित निकलकर राजग्रही Kनगरी में चांडाल के कुल में युगल-जोडेपने उत्पन्न होंगे ॥ ३२ ॥ तब फिर बालक के मातापिता इग्यारवे 3 दिन अतिक्रमे पारवे दिन इस प्रकार नाम स्थापन करेंगे-पुत्र का शकट नाम और पुत्री का सुदर्शना नाम देंगे ॥ ३३ ॥ तब फिरु शकट बालक बाल्यावस्था से मुक्त हो यौवन अवस्थाको प्राप्त होगा। Ammmmmm दुःख विपाक का-चौथा अध्ययन-श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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