SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र अर्थ 42 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी बंधणं करेइ, जेणेव महचंदेराया तेणेव उवागच्छइ रत्ता करयल जाव एवं वयासी एवं खलु सामी ! सगडेदारए ममं अंतपुरियंसि अवरद्धे ॥ २७ ॥ तणं से महचंदेराया सुसेणं अमचं एवं वयासी तुमं चेवणं देवाणुपिया ! सागडस्स दारगरस दंडनितेहिं ॥ २८ ॥ तरणं से सुसेण अमचे महच्चंदेणं रण्णा अब्भणुष्णाए समाणे सगडं दारयं सुदरिमणं च गणियं एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ ॥ २९ ॥ तं एवं खल गोयमा ! सगडेदारयं तं पुरापोराणाणं दुश्चिण्णाणं जाव विहरइ ॥ ३० ॥ सगडेणं भंते! दारए कालगए कहिं गच्छहिंति कहिं उववजिहिंति ? गोयमा ! खुनीकर खूबमराया, उस की हडीयों नोड डाली, दही के ज्यों मथन किया, उल्टी मुमकों से बन्धा, जहां { महाचंदराजा था तहां लाया, लाकर सावंदरावासे हाथ जोडकर यों कहने लगा-यों निश्चय हे स्वामी! इस शकट कुमारने मेरे अन्ते पुर में अत्याचार किया है ॥ ५७ ॥ तब महाचंद राजाने सुबेन प्रधानसे कहा, हे देवानुप्रिय ! तुम ही तुमारी इच्छा प्रमाने शब्द कुमार को जैना जानो वैसा दंडकरो ॥ २८ ॥ तब फिर वह सुसेन प्रधान महाचंद राजाकी आज्ञा हुने शकट कुमारको और सुदर्शन गणिकाको हे गौतम तुमने देखा उस प्रकार बन्धन में न्धकर मारने की आज्ञा दी है ।। २१ । इसलिये हे किये बहुत काल के पाप के फल भोगवता हुवा विचर रहा है ॥ ३० ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only गौतम! शकट कुमार पूर्वोपार्जन भो भगवन् ! शकट कुमार ● प्रकाशक - राजबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजो ९८ www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy