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________________ एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 128 अभिंतरए ठवेइ २ त्ता ॥ २५ ॥ तएणं से सगडेदारए सुदरिसणाओ गिहाओ . णिछुभेसमाणे अण्णत्थ कत्थइ सूइंवा खूइंवा अलभ, अण्णयाकपाइ रहस्सियं सुंदरिसणागिहंसि अणुप्पविसइ, सुदरिसणाए सद्धिं उदालाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ॥ २६ ॥ इमंचणं सुसेणं अमच्चे हाए जाव विभूसिए मणुस्स वग्गुराए जेणेव सुदरिसणाए गणिया गिहे तेणेव उवागच्छइ.२ ता पासइ सगडंदारयं सुदरिसणाएसडिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे पासइ, आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि पिडाले साहटु सगडंदारयं पुरिसेहिं गिण्हावेइरत्ता अट्ठि आव महियं करेइ,अवउडगको अपनी स्त्री बनाइ अभ्यन्तर घरमें स्थापनकी॥२६॥तब वह शकट कुमार सुदर्शन गणिकाके घरसे निकाला हुवा अन्य किसी भी स्थान रति-सुख प्राप्त कर सका नहीं. अन्यदा किसी वक्त गुप्तपने सुदर्शना गणिका के घर में प्रवेश कर सुदर्शना गणिका के साथ उदार प्रधान मनुष्य सम्बन्धी काम भोग भोगवता विचरने लगा ॥ २६ ॥ उस वक्त सुमेन प्रधान भी स्नान कर वस्त्रभूषणादि से अलंकृत हो मनुष्यों के परिवार से है परिवरा हुवा जहां सुदर्शन गणिका का घर था तहां आया, आकर सुदर्शना गणिका के साथ शकट बालक को उदार प्रधान भोग भोगवता देखकर, शीघ्र ही क्रोधातर हुवा सर्प के ज्यों फंफाटे करता हवाई तीनशल्य निलाडपर चराकर शकट वालकको अन्य पुरुषके पास एकडाया,पकडाकर ईटों पथरों लातों घुटने दुःखविपाक का तीसरा अध्ययन-चौथा शकस्कु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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