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________________ १०१ एकादशम्मकिपाक मूत्र का प्रथम श्रुत्स्स.न्ध 422 प्पभाए पुढवीए णेरइएत्ताए उबवण्णे, संसारो तहेव जाव पुढवीसेणं, तओ अणंतर उवाहित्ता वाणारसीए णयरीए मच्छत्ताए उववजिहि, तिसेणं तत्थणं मच्छ मच्छ बंधिएहिं वहिए, तत्थेव वाणारसीए णयरीए सेटुिंकुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाहिंति, बोहिं पवजा सोहम्मेकप्पे. महाविदेह वासे · सिज्झिहिंति ॥ ३९ ॥ णिक्खवो दुहविवागरस चउत्थं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ४ ॥ उपार्जन कर काल के अयसर में काल पूर्ण कर इस ही रत्नप्रभा पृथ्वी में नेरीयेपने उत्पन्न होगा, तहां से अन्तर रहित निकलकर बनारसी नगरी में मच्छपने उत्पन्न होगा, तहां मच्छ वधक के मारने से उस ही वनारसी नगरी में शेठ का पुत्र हो दीक्षा धारन करेगा, वहां सेआयुष्य पूर्ण कर सौधर्मा देवलोक में देवता देशा, वहां से महा विदेह क्षेत्र में जन्म ले संयम ले मोक्ष प्राप्त करेगा ॥ ३९ ॥ निक्षेप ॥ इलि. दुःख विषाक का शकंटकुमार का चौथा अध्ययन संपूर्णम् ॥ ४ ॥ दुःख विपाक का-चौथा अध्ययन-शकटकुमार का 8 क For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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