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णिय वाडगंसि सण्णिरुहाई चिट्ठइ ॥ १३ ॥ अण्णेय तत्थ बहवे पुरिसा दिण्णमा भत्त वेयणा बहवे अए जाव महिसेय सारक्खमःणा संगोवेमाणा चिट्ठइ॥१४॥ अण्णेय से बहवे पुरिता अयाणय जाब गिहनिणिरुद्धा चिटुंति ॥१५॥ अण्गय से बहंव पुरिसा दिण्णभइभत्त गण! बहर आय र महिय जीवियाओ विवरोविंति २ सामंताई कप्पणी कनियाई करेइ २त्ता छाण्या गालयस्त उणे।।१६। अप्णय से बहब पुरिमा दिण्णमत वेयणाताई बहुयाई अयमंमाइये जाव महिसमसाइयं, तबएमय कयलीसुय बकरे यावत् भेनों का संरक्षण करने दाना घांस पानी की संभ ल लते चोरादि उपद्रव से बचाते हुवे विचर से थे ॥ २४ ॥ और भी बहुत में मां को बह खान पान नखादेता था वे का बकरे यावद मेंसे को
बारे में गोपकर छिपाकर रक्षण कर रख थे ॥१५ ।। और भी बहुत पुरुषों को बह खाम नखादेता था, वे बहुत से पकर यावत् भेंगे का जीवित मे रहित कर मार कर, उन के मांस के छुरा आदिकर दुकटं २ कर उनछन खटोक को देने थे॥ ॥ और भी बहुनसे पुरुषों उस बहुतसे पर
के माम को यावत् भैन के मां को, तावों में कडा में कुंभ (घडे) में मूंजने के लिये अग्निपर चडाकर 11 वसते ये मूला-टुकडा करते थे, सेक-भंजकर सोला कर, उस को राज मार्ग में बेचते हुये आजीविका
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलकं ऋषिनी"
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प्रकाशक:राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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