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* एकादशमांग-विपाक मूत्र का प्रथम श्रुत्कन्ध488
कंदसय भजणाएसुय,इंगालेमय,तलेतिय, सोलितिय,तर्लिताय सोलिताय राय मग्गांस - वित्तिकप्पेमाणा विहाति॥१७॥अप्पणावियणं से छाण्णए छागलिए ॥१८॥ एय कम्मे पविसेसं बहुपशवकम्मं कलिकलुमं सम्मजिणिसा, सत्तवास सयाई परमाउपलिता कालमासे कालंकिच्चा चरत्थीए पुढबीए उक्कोसण दस सागरोबम टिइएस गरएसु गरइयत्ताए उबवण्ण१९॥ तएणं सुभदरस सत्यवाहस्स भदाए भारिया जावणियायावि होत्था, जाती पारगा विणिहायमावजा२.तिएणं से छािए छागलीए चउत्थीए पुढवीए अणंयरंउवाहिता इहव सोहंजगीए णयरीए सुभहस्त सत्थवाहस्स, भदाएं नारियाए कुञ्छिसि.
पुत्त्चाए उवषण्णे ॥२॥तएणं सा सुभदासस्थवाहीणी अण्णयाकयाइ णवण्हं मासाणं करते हुने विकरते थे ॥ १७ ॥ वह छनिक खाटिक आप स्वयं भी उन बहुत मे बकरे का यावत् असे का मास खाता हुवा विचरता था ॥ १८ ॥ इस प्रकार वह छत्रीक कसाइ प्रधान अशुभ कर्मों का उपार्जन कर है। बहुन पापकों क्ला के कारण का मंयकर सानो वर्ष का उत्कृष्ट प्रयुगा पालन कर,काल के अवसर में काल पूर्णकर चौथी नरकमें उत्कृष्ट दशनागगेगम की स्थिनिपन नरक में नेरीयेपने उत्पन्न हुवा ॥१९॥ तब वह मुभद्र सार्थवाहींनी मृतांज्म थी उसके बालक जाते रहत नहीं थ२०॥ फिर वह छनिक खाटकी चौथी नरक से निकलकर सोइंजनी नगरी में सुभद्र सार्थवाही की भद्रा मार्या के कुक्षीमें पुश्पने उत्पन हुआ।२१॥ तब फिर ।
दाखविपाक का चाथा अध्ययन:शकटकुमार का
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