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________________ सूत्र अर्थ +++ एकादशमांग- विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतवन् पुरिसं आवडगबंध उक्खत्तं जाय उघोसणचित्ता; तत्र जाब ||१०|| भगवं वागरेइ एवं खलु गोयमा ! तेणंकालेणं तेनएणं ईहेव जंबूदी वेदीचे भारहेवासे छगलपुरे यरे होत्या, तत्थ सिंह गिरीणामं रामा होत्या महया || ११|| तत्थणं छगलपुरे णयरे छणिए णामं छगलिए परिवसइ, अड्डे, अम्निर जाव दुडियाणंदे ॥ १२॥तस्वणं छष्णयछाग लियरस बहवे - अजाणय, एलाणय, रोज्झाणय, वसभाणय, ससयाणय, परायाणय सूयराणय, सिंघाणय, हरीणाणय, मयुराणिय, महिलाणिय, सहस्संबद्धाणिय, जुहा• क्या पाप का संचय किया है जिससे नरकके जैसे दुःख का प्रत्यक्षानुभव कर रहा है॥ १० ॥ भगवंत बोले यों निश्चय हे गौतम ! उस काल उस समय में इन ही संदीप के भारत वर्ष में छगलपुर नाम का नगर था, तहां सिंहगीरी नामका राजा राज्य करता था, वह महा पर्वत समान था ॥ १२ ॥ उस छात्र था और अधर्मी यावत् कुकर्म कर पूर नगर में छणिक नामका खाट की (कसाई) रहता था के आनन्द पाता था || १२ || उस छनिक खाकी के बहुत से छला बकरे, एक मेंढे, रोझ, बेल, सुनले सुबर, सिंह, हिरन, मयुर, भैंसे, इत्यादि हजारो पशुओं का युथ वांडे के विष पूरा हुवा - मराहुवा निलंबन किया वा रखा था ।। १३ ।। और भी तहां बहुत पुरुषो जिन को आहार पानी तनखा देता था, वे Jain Education International For Personal & Private Use Only 403 दुःखविपाकका चौथा अध्ययन - शकटकुमार का ९३ www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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