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48एकादशमांग-विपाक सत्र का प्रयय श्रुत्स्कन्ध88+
* चतुर्थ-अध्ययनम् * जइणं भंते ! चउत्थरस उक्खेवा-तणंकालणं तणंसमएणं सोहंजणगामं गयरी .. होत्था, रिद्धास्थानिय ॥ १॥ तीसणं सोहंजगीणयरी बाहया उत्तरपुग म दिमीभाए देवरमणेणाम उजाणे होत्था,तत्थणं अमोहस्स जखस्त जायगे हत्था.पुगणे॥२॥ तत्थणं सोहंजणीयरीए महच्चंदण्या होत्था महया ॥ ३ ॥ तमाम मह वदस्म रणो सुसेसेणेणामं अमच्चे होत्था, सामभयदंड णिगह कुमले ॥ ६ || ई जणिए णयरीए मुदंसगा णामं गाणया हे त्या वण ॥ ५ ॥ तत्थ गं माहंजणी णयरीए चौथा अध्ययन-उस काल उस समय में मोहंजनी नामकी नगी ऋद्ध स्मृद्धिकर मंयुयी ॥ १ ॥ इस सोहजनी नगरी के बाहिर ईशान कौन में देवरान नाम का उध्यान था, वहां अमंघमे यक्ष का यक्षायतन (देवालयथा) वह बहु काल का जीर्ण बच्च' था ॥ २ ॥ नीगरी में महाद नाम का राजा राज करता था. वह महा हिवंत तिममान था ॥ ३ ॥ उस महावद राजा के भुन नाम का प्रधान था. वह प्रधान शाम-वचनादि मे सन्मांपकर, भेद-सरसर भेद पडाकर, दंड-निग्रा करके। इत्यादि राजनीति के शास्त्र में कुशल था ॥ ४॥ तहां मोहंजनी नगरी में सदा नामकी गाणका रहती। थी, उस का वर्णन् कामन गणिका जैसा जानना ॥ ५ ॥ उस सहिंजणी नगरी में सुभद्र नामका सार्थ ।।
दुःवविपाक का-चौथा अध्ययन-शकारकयार का
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