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* चतुर्थ-अध्ययनम् * उक्खेवओ चउत्थरस अज्झयणस्स–एवं खलु जबूं ! -तेणं कालेणं तेणं समएणंवाणारसीणामं नथरी, कोट्टए चंइए, जियसत्तुराया, सुरादेवे गाहवइ! अडेजाव अपरिभूए...
छहिरण्ण कोडीओं निहाणपउत्ताओं, छ वुड्डी पउताओ,, छपावित्थर पउताओ, छवग. ___ दसगो साहस्सिएणं वएणं ॥ धन्ना भारिया ॥ सामी समोसवें ॥ जहा आणंदो तहेव ।
गिहधम्म पडिवजंति जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मंपण्णति जाब विहरइ॥३॥
उक्षेप चौथा अध्ययन का-यों निश्चय, हे जम्बू ! जस काल उस समय में बनारसी नाम की नगरी, cal
कोष्टक चैत्य उद्यान, नित शत्रु राना राज्य करता था. वहां बनारसीन्नगरीमें मुरादेव नामका गाथापति रहता | था, जिम के छ हिरण्य कोडी द्रव्य निधान में, छे कोही द्रव्य व्यापार में छ कोडी द्रव्य का पाथरी, छे वर्ग गायों के +और धन्ना नाम की स्त्री थी. श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे परिषदावंदने मइ, सूरादेव भी गया, धर्मकथा । मुनाई, परिषदा पीछीगइ, सूरादेवने गृहस्य का धर्म श्रावक के व्रत आनंद श्रावक के जैसे ही अङ्गीकार किये, 'धन्ना
रिया को भी अङ्गीकार कराये, भगवं गौतम स्वामीने प्रश्न किया, आणंद के जैसा ही उत्तर दिया ॥2 भगवंतने विहार किया ॥ सूरादेव बड़े पुत्रको पर का भार सुपरतब्कर पौषष शाला में धर्म ध्यान ध्याता।"
H+ सप्तमांग-उपाशक दशा-सूत्र 488
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48 सूरादेव-श्रावक का चतुर्थ अध्ययन
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