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4. अनुपादक-घालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
आणंदो जाव इक्कारस्स उवासग्ग पडिमा आराहेइ॥१९॥तएणं से चुल्लणीपिया समणोवासए
जहा कामदेवो जाव सोहम्मे कप्पे सोहम्मघडिंसगस्स महाविमाणरस उत्तर पुरथिमेणं __ अरूणपठभे विमाणे देवत्ताए उववन्नो, चत्तारि पलिओवमाई दिई जाव महाविदेहेवासे
सिझंति॥२०॥ निक्लेवो तहेव ॥ उवासग दसाणं तइयं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ कार की, जिस प्रकार आनन्द श्रावकने की थी उम ही प्रकार इग्यारे प्रतिमा का सम्यक् प्रकार मे
किया ॥ १९ ॥ तब चुल्लनीपिता जिस प्रकार कामदेव श्रावकने अनशन किया था उसही। अनशन संथारा कर, साठ भक्त अनशन छद, बीस वर्ष श्रावकपना पाल, काल के अवसर में काल कर, प्रथम सौधर्म देवलोक में सौधर्म वैमान से ईशान कौनमें अरुणाभ नामक विगनमें देवतापने उत्पन्न हुवा॥२०॥ वहां चुल्लनीपिता देव का भी चार पल्योपम का आयुष्य कहा है. तहां से आयुष्य का क्षय कर, भव का क्षय करें, स्थिति का क्षय करं, निरन्तर चवकर महा विदेह क्षेत्र में जन्म ले. यावत् सिद्ध बुद्ध होगा सर्व दुःख का अन्त करेगा. निक्षेप तैसे ही कहना ॥ इति तीसरा चुल्लनीपिता श्रावकका अध्ययन संपूर्ण ॥३॥
* प्रकाशक-सनाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी ,
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