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________________ मंत्र अर्थ 4 सप्तशंग उपाशक दशा सूत्र तण सामा सत्यवाहीणी दीपय एवं क्यासीनो खलु केइ पुरी तब जा कणीय पुनं साओगिहाओ नाव अग्गओ घाति एस केइ पुरिसे नव उवसग्गं करोति. सणं तुम्मविदम् इदाणि भगव्य, भग्ग नियम, भग्गेपसहोवा से बिहस, तरणंतुमं पुत्ता! एयरस द्वाणस्स आलीएहि जावयास पडिवजाहिं ॥ १७ ॥ नणं चुपिया समया शस अम्मगाए महाए सात्यवाहीणिएतदृत्ति, एयमट विणणं सुई २ता तर ठाणस्स आलांएइ जात्र पडिवज्जइ ||१८|| तत्तणं मे चुलणीप्पिया ! पढमं उवासँग उपजित्ताणं विहरइ. पढमं उबालग पहिनं अहासुत्तं जहा किया || १६ || तब भद्रा मार्थवाहीनी चुनीपिता मे यो बोली – निश्चय किसी पुरुषने भी तेरे बड़े पुत्र को यावत् छोटे पुत्रको घर लाकर मारा नहीं है, फक्त यह तो किसी पुरुषने तेरेको उपसर्ग उपजाया है, (या किसी देवता गायनाकर तेरी परिक्षा के वास्ते तुझे बताया है.) इसलिये हे पुत्र ! तेरे इस व्रत का मंग हुवा, नियम ( अभिग्रह ) का भंग हुवा, पोपत्र व्रत का भंग हुवा, हे पत्र ! तू इस दोषस्थान की आलोचना निन्दना कर प्रायःश्चित ग्रहण कर शुद्ध होवो ॥ १७ ॥ हनीपिता श्रवण पासक भद्रा माताका उक्त वचन सविनय मान्य किया, उस दोष स्थानककी आलोचना निन्दना की, प्रायः श्चिमले शुद्ध पिता श्रमणोपासक आवककी इग्यारे प्रतिमा अनुक्रममे जंगी ॥ फिर Jain Education International For Personal & Private Use Only * हनीपिता श्रावण का तृतीय अध्ययन www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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