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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमी *
तंएणसे पुरिसे दोच्चंपि तच्चंपिमम एवं क्यासी-हंभो चुल्लणिया अज जाव ववरोविजसितएणं . तेणं पुरिसेणं दोच्चपि ममं तचंपि एवं वृत्त समाणेस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जात्र समुप्पजित्ता-अहोणं इमे पुरिसे अणारिए जाव अणायरिय कम्माइं समायरति.जेणं मम जेटुंपुत्तं सातोगिहातो तहेव कणियसं जाव आइयति, तुझेवियणं इच्छीत सातोगिहातो णीणेत्ता मम आगाओ घाएति. तं संयंखलु ममं एयं पुरिसं गिण्णत्तए त्तिकटु उट्ठाइए,
सेविय आगासे उप्पत्तिए, मएविय, खंभे आसाईए महया२ सदेणं कोलाहलेकए॥१६॥ यावत् उस को भी तेरे सन्मुख मारकर रक्त मांस तलकर तेरे शरीर पर छांदूंगा. तब मैं चौथी वक्ता उस का यह वचन श्रवण करके भी डरा नहीं यावत् धर्म ध्यान ध्याता हुवा विचरने लगा. तब वह पुरुष दो वक्त तीन वक्त उक्त प्रकार वचन बोला, तब मेरे मन में विचार हवा कि-यह पुरुष अनार्य है। यावत् अनार्य कर्म का करनेवाला है, इसने मेरी तीनों पत्रों को मारकर उन का पांस रक्त सलकर मेरे शरीर पर छांटा, अघ चौधी वक्त यह मेरी माता भद्रा मार्थवाहीनी देव गुरु समान जनीता दुक्कर २ कष्ट की। उठानेवाली उसेमारना चहाता है, इसलिये इस पुरुषको पकडना मझे श्रेय है. यों विचारकर उठा,इतनेमें यह पुरुष भी आकाश में उड गया, और मेरे हाथ में स्थंभ आगया, जिस से मैंने महा २ सध्द कर कोलाहल
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी.
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