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म अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
तएर्ण तस्स सुरादेवस्स समणोकसयस पुव्यरचा वरतकाल. समयंसी एगेदेवे अंतियं.. पाउन्मुवित्ता, से देवे एमं महं निलुप्पल जाव असिंग्गहाय सूरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभी सरादेव समणोंवासया! अपस्थिय पत्थियाजइणं तुम सीलन्वयाइं जाव न भंजास,तो ते जेठं पुत्तं सातो गिहातो णीणेमी रत्ता तव अगातो घाएमी, २त्तापंच मंस सोलए करेमि, रचा आयाणं भारयसि कडाहयंसि अहमि,स्त्ता तव गाय मंसणय सोणिय-- OR आइंचभि, जहाणं लुमंः अकाले चेव जीवियाओ. विनरोक्जिसि ॥ एवं मझिमं हुवा विचरने लगा ॥१॥ तच. मुरादेव. श्रावक के पास पूर्वरात-आधी रात व्यतीत हुने एक देवता प्रगट हुचा उसने कामदेव के अध्यपन में कहा जैसा ही रूप बनाया यावत्. निलोत्पल समान खा.हाथ में लिये । हुवे यों काने लगा-भों सुगदेव ! अपार्षिक के प्रार्थनेवाले यावत्- जो तू.शील व्रत पौषधादि करेगा तो आज तेरे बड़े पुत्र को तेरे आगेः लाकर मारूंगा, उस के शरीर के मांस के पनि ? टुकडे करा आदन से उकलती कडाई में तलकर तेरे शरीर पर छांदूंगा, जिस से तू- आर्स. ध्यान ध्याता दुःखी हो - काल में मरेगा.. उक्त वचन देवताका श्रवण कर मूरादेव चलायमान नहीं हुवा, तब देवता कोपायमान हो जिस प्रकार सुखानीपिता के तीनों पुत्रों को मारकर तलकर उस. के शरीर पर छठे थे तैसे मुरादेर के
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवप्सहायजा ज्वालापसादजी
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