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________________ सत्र narenmmmmnannnnnnnnnnwom सप्तमांग-उपासक देशाः सूत्र समणे भगवं महावीरे एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! तुम चेवणं तस्स टाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्त पडियजहि, आणंद समणोवासयं एयमढें खामोहि ॥८९॥ तत्तणं से भगवं गोयमे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहत्ति एयमढें विणएणं पडिसूणेति २ चा. तस्स टाणस्स आलोईए जाव पायच्छित्तं पडिवजहि, आणंदस्स समणोवासयं एयम? खामेति ॥ ९० ॥ तएणं समणे भगवं महावीर अण्णयाकयाइ बहिया जणवय विहारं विहरइ ॥ ९१ ॥ तएणं से आणंदे ममणोवासए बहुहिं सोलबएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाहि समणोवासग परियाग पाउणीत्ता . उस स्थानक की आलोचना करो यावत् प्रायःश्चित्त ग्रहण करो, और आनन्द श्रावक को इसलिये क्षमावो ॥ ८९ ॥ श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी का वचन भगवन्त गौतम तहति कर, उस आज्ञा को विनय युक्त मान्य की उस मिथ्या उच्चार की आलोचना निन्दा कर यावत् प्रायःश्चित्त लिया, आनन्द श्रावक के निर्दोष वचन को दोषन दिया जिस की क्षमा याची ॥९॥ अन्यदा किसी वक्त श्रमण भगवन्न महावीर स्वामी ने वहां से बाहिर जनपद देश में विहार किया. ॥ ९१ ।। वे आनन्द नामक है मोलासक बहुन विशुद्ध परिणाम से पांच अणुवत सात गुणवत सामायिक पौषधोपचाप्त श्रावक है 8- आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन अथ - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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