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अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एगारस्सग उवासग पडिमाओ सम्मं काएणं फासिता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्तंति अणसणाई छेदित्ता आलोइए पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालंकिच्चि सोहम्मे कप्पे सोहम्मेवाडंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमेणं अरूण विमाणे देवताते उववण्णे।।९२॥ तत्थणं अत्थेगतियाण देवाणं चत्तारि पलिओ षमाइ ट्रिति पण्णत्ता, तत्थणं आणंदरसवि देवस्स चत्तरि पलिओवमाइ द्विति पण्णत्ता ॥ ९३ ॥ आणंदेणं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
की इग्यारह प्रतिमा आदि का आराधन कर बीस वर्ष श्रावकपना की पर्याय का पालन कर, इग्यारह श्रावक की प्रतिमा सम्यक् प्रकार से स्पर्श कर, एक महीने की सलेषना कर आत्मा की तप मार्ग में झोंसनाकर साठ भक्त अनशन का छेदन कर, लगे हुवे दोपों की आलोचना निन्दना ग्राण प्रतिक्रमना कर, समाधी भाव को प्राप्त होकर काल के अवसर में काल पूर्ण कर-मृत्यु पाकर प्रथम सौधर्म देवलोक के मौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कौन में अरुण नापक विमान में देवतापने उत्पन हु ।। ९२॥ तहाँ अरुण विमान में कितनेक देवताओं की चार पल्पोपा की स्थिति कही है. तहां आनन्द देवता भी चार पल्योपम की स्थिति पाये ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! आनन्द देव उस देवलोक से-यहां का बंधन
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