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________________ - अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी त्ता एवं घयासी-खिप्पामेव लहुकरण जाव पज्जुवासति ॥ ६ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे सिवानंदाते तीसेयमहति धम्मंकहेति ॥६॥ ततेणं सासिवाणंदा समणस्स भगवओ महावीर अंतिए धम्मसोचा हट्ट जाव गिहिधम्म पडिवज्जति २त्ता ।। तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहति २ त्ता जामवदिसं पाडन्भूया तामेवदिसं पडिगया ॥ ६२ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे-समणं भगवं महावीरं वदति नमंसति वदित्ता नमंसिचा एवं क्यासी-पभणं भंते ! आणंदे समणेवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वचित्ते ? नोतिण? समटे ॥ गोयमा ! आणंदेणं सभणोवासते बहुई समीप आई यथाविधी वंदना कर सेवा भक्ति करने लगी ।। ६० ॥ तब श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी उस शिवानन्दा को उस महा परिषद को धर्म कथा सुनाई ॥ ६१ ॥ तब वह श्रमग भगवंत श्री महावीर स्वामी के पास धर्म श्रवण कर शिवानन्दा हृष्ट तुष्ट हुई यावत् बारेव्रत रूप ग्रहस्थ का धर्म अङ्गीकार किया, उस ही धर्म रथ पर स्वार हो जिस दिशा से आई थी उस दिशा पीछी ( अपने घर ) गई ॥६॥ भगवंत, भगवन् गौतम ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार किया, और यों कहन लगे-अंहो भगवन् ! आनन्द श्रावक देवानुप्रिया के पास मुण्डित हो यावत् दीक्षा धारन करने समर्थ है ? गवन्नने कहा, यह योग्य नहीं है अर्थात् दीक्षा लेने समर्थ नहीं हैं. परंतु हे गौतम ! आनन्द श्रावक, * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी* Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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