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________________ 488 - 427 सप्तांग-उपाशक दशा सूत्र णगरे जेणेव सएगिहे, तेणेव उवागच्छइत्ता सिवाणंदा भारियं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिए ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म णिसंते, सेवियधम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुतिते, तंगच्छहणं तुमंदेवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीर वंदइ जाव पज्जुवासाइ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतीते पंचाणुवतियं सत्तसिक्खायतियं दवालसविहं गिहिधम्म पडिवजाहि ॥ ५९ ॥ तएणं सासिवाणंदा भारिया अणंदे समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा कोडुंबिय पुरिसे सहावेई २ नमस्कारकर श्रमण भगवन्त श्री महावीर स्वामी के पास से द्युतिपलास चैत्य से निकला, निकलकर जहाँ । वाणिज्यग्राम नगर जहां स्वयं का घर था तहां आया, आकर शिवान्दा भार्या से यों कहने लगा-यों निश्चय हे देवानुप्रिय ! मैंने श्रमण भगवन्त श्री महावीर स्वामी के पास धर्म श्रवन किया, वह मर्च इच्छा विशेषच्छा सार भूत जाना, इसलिये हे देवानुप्रिय ! तुम भी जावो श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करो यावत् पर्युपासना-सेवा करो, श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पास पांच अनुव्रत सात शिक्षाप्रत बारह प्रकार का गृहस्थ का धर्म अङ्गीकार करो ॥५९॥ तब वह शिवानन्दा भार्या आनन्द श्रमणो पासक के उक्त वचन श्रवणकर हृष्ट तुष्ट हुइ कुटुम्बिक पुरुष को बोलाया, बोलाकर यों कहने लगीशीघ्रता से शीघ्रगति वाला अश्चोंका धर्मरथ तैयार कर लावो, वह राथ तैयार कर लाया यावत् भगवन्त के आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 6 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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