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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + दाउवा, नन्नत्थ-रायाभिओगेणं, गणामिओगेणं, बलाभिओगेणे, देवाभिओगेणं, गुरुनिग्गहेणं, वित्तीकंतारेणं ॥ कप्पतिमे समणे निम्गथं पासूएसणिजेणं असणं पाणं खाइमं साइमं वत्थ पडिग्गह कंबल पापुंच्छणेणं पीढ फलग सिज्जा संथारएणं ओसह भेसज्जेणं पडिलाभेमाणस्स विहरित्तए त्तिकटु ॥५८॥ इमे एतारूवं अभिग्गहें गिणितिरत्ता पसिणाई पच्छति२त्ता अटाइ मादियतिरत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं वंदति नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता समणरस भगवतो महावीरस्स अंतियातो दुईपलासाओ चेइयालो पडिणिक्खमइ २त्ता जेणेव वाणियागाम धर्मार्थ ] देना, ब (धर्म होगा ऐसा उपदेश कर ) दिलाना, नहीं कल्पे. निस में ? राजा के अम्रह कर, २ जाति के अग्रह कर, ३ बलवन्त के अग्रह करे, ४ देवता के कारण कर, ५ मातपितादि जेष्ट जानों के निग्रहकर, और कन्तार अटवी में पड़े हुवे या दुर्भिक्षादि विपाते में पडे हुवे को देनेका आगार है. और अहो भगवन् ! मुझे श्रमण-तपस्वी-निर्ग्रन्थ को फ्रासुक एषनिक-शुद्ध अशन पान खादिम स्वादिम वस्त्र पात्र कम्बल रजोहरण, पाट, पाटला, स्थनक, विछोना औषध सूठ लवंमादि भेषधा--तेल चरणादि प्रतिलाभता-देता हुवा विचरना कल्पता है,॥५८॥ यों इतने प्रकारके अभिग्रह-नियम धारन किये, इसमें या अन्य किसी प्रकार की शंका थी उस के प्रश्न पूछे, पूछकर अर्थ धारन किये. अर्थ धारन कर भ्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर वेदना नमस्कार किया, वंदना . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org Jain Education International
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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